इसी हफ्ते पापा मुझे मम्मी को लेकर मुखर्जी नगर के बत्रा सिनेमा हॉल के पास स्थित मेरठवाले नामक एक मिठाई की दूकान पर ले गए .ये दूकान मुखर्जी नगर में मिठाई की सबसे अच्छी दूकान मानी जाती है . मम्मी- पापा ( खासकर मम्मी को ) यहाँ की जलेबियाँ और इमरती बहुत अच्छी लगती है . यहाँ पर जलेबी और इमरती देशी घी में बनाई जाती है इसलिए महंगी है पर स्वाद और सेहत के लिए थोड़ा महँगा भी चलता है . जब हम वहां पहुचे तो दूकान दार इमरती ताल रहा था और बोला की जलेबी बनाने में दस मिनट का टाइम लगेगा . पापा ने उसको बिल की पर्ची थमा दी और हम जिलेबियों का इंतज़ार करने लगे, तभी मम्मी ने कहाँ की माधव के लिए कुछ बुक खरीदते है . और मेरे लिए पहली पुस्तक खरीदी गई. नवनीत प्रकाशन की दो पुस्तके मेरे लिए खरीदी गई जिनमे चार पन्ने है . पहली पुस्तक में पालतू जानवर की तसवीरें है , तो दुसरी पुस्तक में ABCD.......
दुकानदार से मैंने तुरंत बुक लपक ली , थोड़ी देर तक देखी , फिर फेक दी . मै आज दो साल तीन महीने का हूँ , क्या ये मेरी उम्र अभी पढने की है .घर पर वो पुस्तके मै देखता हूँ , आधा फाड़ चुका हूँ,
बाकी भी कब तक बचेंगे .
आप बताये , मै आज दो साल तीन महीने का हूँ , क्या ये मेरी उम्र अभी पढने की है ?
पहली पुस्तक
सीधा तो सभी पढ़ते है , उलटा पढ़ कर दिखाओ तो जानू
चित्र / फोटू देखकर अच्छा लगता है
11 comments:
बिलकुल पढने की है लाल्ला.. कोई बहाना नहीं..
प्यार...
अब भई, पढाई तो करनी पढ़ती है ना :(
ale abi to chhab faal ke fenk do...ha ha ha
bahut bahut pyaal..
नहीं तो बेटा , लेकिन मम्मी पापा को कौन समझाए ।
पढना अच्छी आदत है
आशीर्वाद
पढने की नहीं पर प्ले ग्रुप में जाकर कुछ सीखने की है.
_______________
पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'
चि0 माधव , किताबे जल्दी जल्दी फाड़ो जिससे नयी नयी आएँ । कैसे हैं आपके मम्मी डेडी खुद अपने लिए जलेबी इमरती लाए और हमारे माधव के लिए किताबें । हमारे पास रहो आके ।
बेटा, अभी कुछ नहीं रखा पढने-वढने में। अभी तो खेलो-कूदो।
हमने तो सात साल का होने के बाद पहली बार किताब खरीदी थी। और तीन साल पहले ही यानी अठारह साल का होते ही किताबों से तौबा कर ली। हमसे कोई पूछता है कि कितने पढे लिखे हो, तो बताता हूं कि दसवीं पास।
और देखो, बडे-बडे पढाकू नौकरी के पीछे भाग रहे हैं, नौकरी मिल गयी तो भी दुखी हैं। और हम अनपढ बराबर होते हुए भी खुश ही खुश हैं।
अब पढ़ना तो पडेगा ही बेटा! टालमटोल ज़्यादा दिन चलने वाली नहीं है.
....पढना अच्छी आदत है
अरे!...आप तो बहुत अच्छे बच्चे हो!...पढाकू भी हो...भाई वाह माधव !
Post a Comment