Wednesday, March 31, 2010

बक्सर (जिन्हें मैंने खो दिया)

होली के दो दिन बाद वाराणसी में मेरी परनानी का स्वर्गवास हो गया . वो मेरे नाना नानी के साथ बक्सर में रहती थी , साँस की बीमारी के चलते उन्हें वाराणसी के अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उन्होंने अपना शरीर त्यागा . वो मुझे बहुत प्यार करती थी , ये तस्वीर उनकी मृत्यु के लगभग एक महीने पहले( ८ फरवरी २०१०) की है



उनको मेरा आखिरी प्रणाम


आपकी सदा याद आयेगी

Monday, March 29, 2010

मेरा ननिहाल : बक्सर

आज मै अपने ननिहाल के बारे में बताता हूँ . मेरा ननिहाल बक्सर में है . बक्सर बिहार में है और आप यदि मुग़ल सराय से पटना की तरफ चलते है तो कर्मनाशा नदी को पार करते ही बिहार शुरू होता है और थोड़ी देर बाद ही बक्सर शहर आता है . बक्सर के बारे में शायद आपने जरुर सूना होगा हां दिमाग पर थोड़ा जोर दीजिये ,अरे अब भी नहीं याद आया .अरे महर्षी विश्वामित्रा का बक्सर . पुराणिक शहर बक्सर के आस पास ही महर्षी विश्वामित्रा का आश्रम था जिसका जिक्र रामायण में है, यही तो भगवान् राम ने ताड़का राक्षसी का वध किया था. फिर १८६४ में एतिहासिक बक्सर युद्ध भी तो यही हुआ था .

बक्सर के बारे में सबसे बेहतरीन बात है की यह गंगा के किनारे बसा है . गंगा के किनारे बने मंदिर और घाट है . घाटों पर बैठकर गंगा के पावन दृश्य का अवलोकन करना कुछ बेहतरीन लम्हे होते है . मै भी पापा के साथ गंगा घाटों पर स्थित मंदिरों में गया और शीतल वायु का आनंद लिया . मैंने तो शीतल वायु का मजा भी लिया और घाटों की सीढीयों पर कदम ताल किया . गंगाजी का पानी बेहद साफ था हाँ थोड़ी बहुत गन्दगी भी थी जिसे खत्म करने की जरुरत है . पापा नदी में नहाना चाहते थे पर तौलिया नहीं होने के कारण नहा नहीं पाए .

गंगा के किनारे ही मेरे पूर्वजों ने एक महान संस्कृति को जन्म दिया है और जिया है जिसे पूरा संसार मानता है , इस नदी का ज़िंदा रहना पुरे भारतवर्ष के लिए ओक्सीजन है. मै इस देवी को बचाना चाहता हूँ ताकि मेरे जैसा कोई और माधव आये तो गंगा को ऐसे ही देखे जैसे की मै अभी देख रहा हूँ .
गंगा नदी के तीर पर मैंने बहुत ताजगी और ऊर्जा महसूस की , यकीन नहीं होता आप भी देख ले


गंगा का मनोरम तट का दृश्य , कुत्तो को भी यहाँ आराम है

गंगा किनारे मंदिर और मंदिर के घाट , गिनते गिनते थक गया

नाथ बाबा का मंदिर

नाव भी है नौका विहार करेंगे क्या ?





दरअसल इस छोटी नाव को "डोंगी" कहते है

ऐसे अद्भुत जगह आप खो से जायेंगे , जैसे की मै खो गया

ये कैसी रही ?


Friday, March 26, 2010

राघव भैया

राघव भैया मेरे बड़े पापा के लड़के है जो नवानगर ( नवोदय विद्यालय ) में रहते है . इनका नाम बाबा ने रखा है , अब आप समझ गए होंगे की मेरा नाम माधव क्यों और कैसे पडा होगा ? राघव भैया है बहुत ही प्यारे . इनकी चर्चा हर जगह होती है , कुछ अच्छी वजहों से और कुछ बुरी वजहों से. वो बदमाश है पर बहादुर है , खतरनाक है इसलिए की लड़ना जानते है, बहुत ही चंचल है पर बच्चे ही तो है . मै तो इनके आगे कहीं नहीं ठहरता . मेरा इनके साथ बहुत अच्छा सम्बन्ध है . राघव भैया मुझे बहुत प्यार भी करते है और दुसरे खतरों से बचाते है , मेरे लिए दूसरों से दुश्मनी मोल लेते है .होली में इनके साथ अच्छा समय बिताया . खेलने , कूदने , झगडा करने , खाने , पीने और बहुत सी यादें है इनके साथ . सोचता हूँ हर साल इनसे मिलने का मौका मिलता रहे . ये रहे कुछ ख़ास पल मेरे राघव भैया के साथ




ये जलती हुई अगरबती है पर इनके लिए डरना मना है



साइकिल चलाना पसंद है

राघव भैया कुर्ता पाजामा में




माधव -राघव , हम साथ साथ है

माधव -राघव , हम साथ साथ है

खेल खेल में



















खेलने का असली मजा समूह में ही है . बिल्कुल बेफिक्र , बिंदास अपनों के बीच में खेलना . चिल्ल्लाना , चीखना , मरना , बहती हवा सा , बिलकुल अल्हड . आरा में वर्षा दीदी , ऋतू दीदी , राघव भैयाँ और मुह्हल्ले के कुछ और हम उम्र के साथ खेलने में बहुत मजा आता था . . ओका बोका ,आइस - पाइस( चोरी -छुपना ) और बहुत से खेल जिनको ओलम्पिक में जगह मिलनी चाहिए , हम खेलते थे , हमारे खेल में कोई हारता नहीं था , न ही कोई प्रथम या द्वितीय आता , बल्कि हर कोई जीतता था . दिल्ली में मै ये सब बहुत मिस करता हूँ . यहाँ दिल्ली में व्यक्तिगत परिवार में ये कहाँ मुमकिन है !

होली की कुछ और झलकियाँ









Thursday, March 25, 2010

होली २०१०






पहली बार होली का मजा लिया . रंगों के साथ पहली बार साक्षात्कार हुआ , होली पर बड़े पापा , बड़ी मम्मी , ऋतू दीदी ओउर राघव भैया सभी घर पर आये थे . घर में खूब भीड़ भाड़ थी और शैतानियाँ करने के मौके भी खूब थे .पापा ने पिचकारी, रंग और टोपी खरीदी . वर्षा दीदी और ऋतू दीदी ने मुझे रंग लगाया . मम्मी को जब सभी रंग लगा रहे थे तो मै रोने लगा .


शाम को हमने नहा धोकर पाजामा कुर्ता पहना , पापा के साथ हमुमानजी के मंदिर में गया और पूजा की . वहां पंडितजी ने मुझे अबीर लगाया , घर आने पर सभी लोगो का पैर छुकर आशीर्वाद लिया और खूब खेला . फिर विकी चचा के साथ शर्मा नाना के घर गया , वहां मैंने पाजामे में ही सुसु कर दिया , परिणामस्वरूप , मेरा पाजामा खोलना पडा और मै नंगे ही घर आया , घर पर नंगा देखकर सभी हँसने लगे.
फिर दिन भर ही थकान जल्द ही नींद लाई और मम्मी के पास जाकर मै सो गया तो ये थी मेरी पहली एक्टिव होली

Tuesday, March 23, 2010

एक अपील





एक अपील

Monday, March 22, 2010

माधव इज बैक ( Madhav is Back)


तकरीबन दो महीने बाद मै आज ब्लॉग पर लौटा हूँ . ५ डिसेंबर २००९ से २० मार्च २०१० तक मै दादाजी /दादीजी (आरा)और नानाजी /नानीजी (बक्सर ) के साथ रहा और उनके प्यार के सानिध्य में पल्लवित होता रहा. मै अपनी बात पापा तक नहीं पहुचा पाया और पापा आप तक नहीं . फिर पापा के पास दिल्ली जाने का समय आ गया.


२० मार्च २०१० को हम आरा से दिल्ली के लिए रवाना हुवे , दादादी , दादीजी , गुडिया बुआ , वर्षा दीदी सबके सब उदास थे और आखे नाम थी . मै भी उदास था सबसे बिछड़ने का गम जो था . रेलवे स्टेशन पर पहुचे तो श्रमजीवी एक्सप्रेस एक घंटे लेट थी , खैर ट्रेन आयी और भागमभाग के बीच हम ट्रेन पर सवार हुवे , पल भर में ही ट्रेन ने आरा शहर को छोड़ दिया . सुबह हुई तो ट्रेन दिल्ली के करीब गाजिआबाद में थी और फिर दिल्ली. दिल्ली में ठंडी हवाओं ने गर्म हवाओं का रूप धारण कर लिया था, टी वी में समाचार आ रहा था की इस साल भीषण गर्मी पड़ने के आसार है ! घर में बहुत गन्दगी बिखरी पडी थी , पापा ने कुछ भी सहेज कर नहीं रखा था , फ्रिज में फफुद लगी थी , रजाई , कम्बल , स्वेटर वैसे ही रखे हुवे थी , कुछ पौधे हरे थे और कुछ सुख चुके है . मेरे दोस्त नमन और तनु का कुछ पता नहीं , वे भी अपने नानी के घर गए हुवे है . इन तीन महीनों में पापा ने अपना ख्याल भी नहीं रखा , बहुत दुबले पतले से लग रहे है , मम्मी के ना रहने से उन्हें खाने -पीने की बहुत प्रॉब्लम हुई . हाँ पापा इस बीच मसूरी और धनौल्टी घुमने गए अकेले -अकेले .

अब अपने बारे में बताता हूँ , मै अब दो साल दो महीने का हो चुका हूँ , लंबाई बढ़ गयी है , बोलना सीख चुका हूँ , दिल्ली को दिलो बोलता हूँ . चप्पल से कुछ ख़ास प्यार पनपा है , बिना चप्पल के पैर जमीन पर नहीं रखता हूँ , दिन भर चप्पल -चप्पल बोलता रहता हूँ . पापा मुझे देखकर बहुत खुश होते है , गोद में उठाते है पर मै भाग जाता हूँ. पानी खूब पीता हूँ , टाफी ( Toffy) , कुरकुरे , बिस्कुट खाना बहुत अच्छा लगता है . मेरे खिलोनों का स्टोक भी बढ़ गया है , नए खिलौने ऐड हुवे है , एक बड़ा सा बैट भी मिला है . कपड़ो के मामले में तो ये मेरा स्वर्णकाल ही है , तीन महीनों में कम से कम तीस -चालीस नए कपडे खरीदे गए मेरे लिए . दो कुर्सियां खरीदी गयी . मकर संक्रांती , होली का जमकर लुत्फ़ लिया मैंने . राघव भइया से नयी दोस्ती भी हुई . मै कुछ बोल्ड हुआ और डरना कम हो गया है .


अगले कुछ दिन तक मै इन दो तीन महीनो की स्पेसल बातें आप तक पहुंचाउंगा.
 
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