Thursday, December 31, 2009

Happy New Year 2010

२००९ मे माधव से जुड़ीं मीठी यादों को मिलाकर एक अलबम बनाया है .पिछले साल की यादों को एक बार देखते हुए , नए साल का सुस्वागतम .






हैप्पी न्यू इयर 2010

आरा : द सिटी ऑफ़ जोय

आरा आकर लगा जन्नत में आ गया हूँ . दिल्ली के दो रूम के कमरे के आगे आरा का घर कोठी से कम नहीं है . दो मंजिले का मकान , छत और आगे का बगान मेरे लिए भरपूर आजादी और पुरी निर्भीकता के साथ खेलने की आजादी .
एक दो दिन में ही मै पुरी तरह वहां के माहौल में ढल गया . शुरू में मेरा विशवास बर्षा दीदी ( मेरी बुआ की लडकी ) पर हुआ , उनसे सबसे पहले दोस्ती हुई . दादा दादी पर भरोशा आने में चार पांच दिन लग गए . दादाजी से तो मुझे शुरू में डर लगा था और उन्हें देखते ही मै भागकर किसी सुरक्षित जगह पर पहुच जाता था , दादाजी यह देखकर हँसतें थे . बाद में दादाजी और बाकी सभी से मेरी दोस्ती हो गयी. दिल्ली की तुलना में यहाँ सभी जल्दी सोते है पांच / छ बजे सुबह तक उठ जाते है , मै भी सुबह उठने लगा हूँ . उठते ही दादाजी के साथ दूध लाने जाता हूँ . फिर सभी छत पर धुप में बैठते है मै भी जाड़े की धुप में बैठता हूँ . ये चीजे दिल्ली में नसीब नहीं होती थी . यहाँ मुझे ज्यादा आजादी है , हर काम के लिए , खेलना, बाहर घूमना , शरारते करना . दादा दादी मेरी शरारतों को देखते है और मुझे रोकते नहीं है , शरारत करने की पुरी छुट देते है . दादीजी कहती है "करने दो शरारत ". आरा की लाइफ दिल्ली से हर मामले में बेहतर है , काम से काम मेरे लिए तो है ही . यहाँ मुझे बाहर घुमाने वाले कई लोग है.
आरा एक जिंदादिल शहर है और यहाँ के लोग भी ज़िंदा दिल है आगे मै अपने आरा प्रवास के बारे के बताउंगा

दिल्ली से आरा की यात्रा

बहुत दिन के बाद आपसे मुखातिब हूँ . अब मै दिल्ली में नहीं बल्कि अपने दादा दादी के पास आरा में हूँ . सबसे पहले मै दिल्ली से आरा की यात्रा के बारे में बताउंगा . ५ दिसंबर को हम दिल्ली से श्रमजीवी एक्सप्रेस से आरा के लिए रवाना हुए . नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हम वेटिंग रूम में बैठे थे , वहा पर एक गाडी खड़ी थी , मैंने उस पर अपना हाथ अजमाया . ट्रेन सही समय पर आयी और हम आरा के लिए रवाना हो गए , मामा हमें स्टेशन तक छोड़ने आये थे .

दिल्ली से ट्रेन खुलते ही मुझे नींद आ गयी , नींद खुली तो बीत चुका था , नींद से उठने के बाद भी मै सुस्त ही बना रहा सो पापा को चिंता हुई मेरी तबियत के बारे में , पर मम्मी ने पापा को बताया की सब कुछ ठीक है , लखनऊ आते आते रात हो गयी और मै फिर सो गया . सुबह मुगलसराय के बाद मेरी नींद खुली , गाडी दिलदारनगर के बाद बक्सर रुकी , बक्सर मेरे नाना नानी रहते है , दोनों मुझसे मिलने के लिए स्टेशन आये थे , हमारी ट्रेन दो मिनट के लिए बक्सर रुकी , नानी ने मुझे गोद में लिया पर मै तुरंत उनके गोद से भाग लिया , ट्रेन फिर खुली और एक घंटे बाद आरा आ गया , स्टेशन पर दादाजी और शर्मा नाना आये थे स्टेशन से निकलते ही गेट पर पोलियो ड्रॉप पिलाने वाले अंकल ने हमें रोका और पोलियो ड्रॉप पिलाया ( ६ दिसम्बर पोलियो डे था ). फिर हम अपने घर चल दिए , घर पहुचते ही सबने मुझ पर धावा बोल दिया ( गोद में लेने के लिए ) .











Friday, December 4, 2009

सवेरे वाली गाडी

कल मै दादाजी के पास आरा (बिहार) जा रहा हूँ . हमें आरा गए हुए छह महीने हो गए है , हम दीवाली और छठ में भी आरा नहीं जा पाए थे , सो एक दिन दादीजी का अध्यादेश आया की माधव को लेकर जल्द से जल्द आरा आ जाओ . दादा दादी मुझे देखने के लिए बहुत अधीर हो गए थे अतः पापा ने घर जाने का प्लान बनाया , श्रमजीवी ट्रेन में टिकट भी करा लिया है. कितना दिन आरा रहना पड़ेंगा , दादाजी और दादीजी की आज्ञा पर निर्भर करता है , फिर मेरा नानाजी के घर जाने का भी प्रोग्राम बन सकता है, वैसे इस महीने मम्मी का जन्म दिन(९ दिसंबर ) और मम्मी पापा की मैरेज एनिवर्सरी(१३ दिसम्बर) भी है .अतः आगे से मै आरा के किस्से बताउंगा , मेरे सुखद यात्रा के लिए शुभकामनाये दीजिए .





टैंक

कल जब मै शाम को सो रहा था तब मम्मी और पापा बिना मुझे लिए बाहर चले गए , बाजार करने के लिए , कमला नगर . उस वक्त मै सो रहा था वरना ये संभव नहीं था की मेरे सामने मम्मी पापा मुझे बिना लिए घर से बाहर चले जाए. जब मै सोकर उठा तो कवक मामा घर पर थे , मम्मी को न पाकर मै रोने लगा तब मामा मुझे बाहर घुमाने ले गए . मम्मी और पापा आठ बजे शौपिंग करके घर आये , मम्मी मेरे लिए खिलौना लाई. टैंक अपने आप चलने वाला टैंक . आप भी टैंक को देख सकते है . ये टैंक गोली/ बारूद नहीं छोड़ता, बल्कि ये मेरे लिए मुस्कान लाता है , मेरा मुस्कान वाला टैंक
















व्यापार मेला २००९ , प्रगती मैदान , दिल्ली , भाग -3, जैकू कौन है ?

जैकू है एक कुत्ता , वोडाफोन वाला कुत्ता . मम्मी ने मेरे लिए ये मेले से खरीदा . घर आने पर मेरा दोस्त नमन मुझसे मिलने आया , जब उसकी नजर जैकू पर पडी तो उसकी तो उसने उसके बारे में पुछा ओर उसका नाम पुछा , मम्मी ने झट से उसका नाम जैकू रख दिया . अब जैकू नमन को बहुत पसंद आता है और उसकी आखों की नींद उडी हुए है . जब भी मेरे घर आता है जैकू के बारे में सबसे पहले पूछता है . जैकू मेरे घर का हीरो बन गया है .














Wednesday, December 2, 2009

व्यापार मेला २००९ , प्रगती मैदान , दिल्ली , भाग -2

रेफ्र्श्मेंट लेकर हम फिर मेला घुमने लगे , इतनी चीजे और इतने हाल थे की बस पूछो मत . घुनते घूमते थक गए पर मेला खत्म नहीं हुआ . पापा ने तो चार बजे ही सरेंडर बोल दिया , वो तो मम्मी थी की कुछ देर और घुमने को मिला . थकने के बाद हम फिर फ़ूड प्लाज़ा में गए , वहा पापा ने बिहार का लिट्टी चोखा खाया , मामा ने कर्नाटक के खाने से इडली खाया . आखिर में मम्मी ने मुझे जैकू खरीदा , जैकू कौन है , क्या है , और जैकू का नाम जैकू कैसे पडा ये बात कल बताउंगा , तब तक आप तसवीरें देखे .







बिहार पवेलियन की तस्वीर

बुलबुले छोड़ने वाला मशीन

 
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