Wednesday, December 1, 2010

कुरकुरे , टकाटक ,चुलबुले और ......

इस बार के आरा यात्रा में मैंने कुछ नयी चीजे खाना सीख लिया है . सबसे पहले चावल - दाल का जिक्र करूँगा . आरा गया तो बुआ ने एक दिन चावल दाल खिलाया , ऐसा चस्का लगा कि सुबह उठते ही चावल दाल माँगने लगा. वहाँ पर वैसे तो दोपहर में चावल बनता था , पर मेरे डिमांड पर सुबह में ही थोड़ी सी चावल दाल बनने लगा . चावल दाल कि भूख अभी दिल्ली आकार भी नहीं मिटी है और जारी है .

दुसरी चीज जिसका चस्का मुझे वर्षा दीदी ,ऋतू दीदी और राघव भैया से लगा , वो था , कुरकुरे टकाटक और चुलबुले . आरा में हमारे घर के बिलकुल पास ही एक छोटी सी दूकान ( रायजी की दूकान ) थी जहां कुरकुरे , टकाटक , चुलबुले , टाफी , नमकीन सब कुछ मिलता था .हमें दादाजी से पैसे मिलते थे और सीधे दूकान से ऑन लाइन शोपिंग हो जाती थी . दो रूपये में कुरकुरे का सबसे छोटा पैकेट मिल जाता था . मै कुरकुरे को कुलकुले बोलता था . पैसे ना हो तब कभी कभी उधारी भी चल जाता था, हमारी साख (Credit) बन गयी थी .




रायजी की दूकान

कुरकुरे , टकाटक या चुलबुले


7 comments:

शिक्षामित्र said...

कभी कुरकुरे के एकाध टुकड़े को जलाकर देखना। एकदम प्लास्टिक जलने सी गंध आएगी। पता नहीं कुरकुरेपन के लिए उसमें क्या मिलाया जाता है। बेहतर है,इसे खाना छोड़ दिया जाए।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

Yashwant R. B. Mathur said...

यार कुछ चुलबुले हमें भी खिला दो :)--


वैसे शिक्षा मित्र जी ने सही कहा है :-(


God Bless!

vijai Rajbali Mathur said...

तुम सब जिस फोटो में एक -दुसरे का कान पकडे खेल रहे हो पसंद आया.

रानीविशाल said...

कुरकुरे के लिए मिली हिदायत बिलकुल सही है बेहतर होगा कम ही खाओ ....दाल चावल कि तो बात ही अलग है . मैं भी बहुत बड़ी राईस इटर हूँ :)
अनुष्का

माधव( Madhav) said...

सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार

माधव( Madhav) said...

कुरकुरे के बारे में आप सबकी सलाह काबिले तारीफ़ है . पर अगर कुरकुरे में कोई जहरीली चीज है तो सरकार को भी इस की जाच करनी चाहिए और इस प्रोडक्ट को बंद कर देना चाहिए .

शरद पवार साहब सुन रहे है क्या ?

 
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