विजय दशमी को (17/10/2010) हम शाम में दशहरा देखने मुखर्जी नगर रामलीला मैदान गए . वहाँ पर राम लीला का मंचन चल रहा था . राम लीला में राम -कुम्भकर्ण युद्ध हुआ , फिर लक्षमन -मेघनाद युद्ध हुआ और आखिर में भगवान राम ने रावण का संहार किया . राम लीला मैदान में खूब भीड़ भाड थी . बहुत सारे लोग आये हुवे थे , बच्चे अपने माँ -पिटा के कंधे पर बैठ कर राम लीला देख रहे थे.मै भी बारी बारी से मम्मी पापा और मामा के कंधे पर सवार रहा . रावण के मरते ही आतिस बाजी शुरू हो गयी ,और मेरा डर के मारे बुरा हाल था . कभी मम्मी . कभी पापा , कभी मामा के गोद में चिपक कर छुप जाता . फिर रावण , मेघनाद के पुतलों में आग लगाईं गई , इतने तेज पटाखे फूटे की मैने डर के मारे आखे बंद कर ली. खैर किसी तरह वो पल बीता , फिर मेले से मेरे लिए मम्मी ने गदा और तलवार खरीदी . घर आने से पहले हम अग्रवाल स्वीट की दूकान पर गए , जलेबिया खरीदी गयी, फिर हमने घर आकार जलेबियाँ खाई .
पायजामा -कुर्ते में
पापा और मामा के साथ ( पीछे रावण का पुतला है )
पटाखे फूटना शुरू हुआ और मेरी सिट्टी -पिट्टी गम
मै सो नहीं रहा ! पटाखों के डर से आखे बंद की है

जलेबियाँ

घर आ कर जान में जान आयी , अपनी गदा के साथ
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