आज कल हमारे घर में पेंट का काम चल रहा है . दीवार को नए पेंट से रंगा जा रहा है . दो पेंटर सुबह ग्यारह बजे आते है दिन भर दीवारें रंगते है और शाम को अपने घर जाते है. कभी पहले कमरे का सामान दुसरे कमरे में तो अगले दिन दुसरे कमरे का सामान पहले कमरे में. पुरे घर में अव्यस्था का आलम है, और इस अव्यवस्था का मै भरपूर लाभ उठा रहा हूँ. इस आदान प्रदान में काफी चीजे भूल गयी है और कुछ मैंने भी गुम कर दी है . परसों अलमारी की चाबी मेरे हाथ में आ गयी , मै उससे खेलता रहा और खेल- खेल में कही गुम कर दिया , वो चाबी कल जाकर मिली . इस भाग- दौड़ में मम्मी काफी व्यस्त रह रही है , और मुझे मौका मिल रहा है कुछ नयी शैतानियाँ करने का . अब दोनों पेंटरों को पेंट करते देख एक ब्रश मैंने भी उठा लिया और शुरू किया पेंट करना ,
अब मैंने कैसा पेंट किया है ये तो आपको ही बताना है
11 comments:
वाह वाह्………ये हुयी ना बात्……………बहुत सुन्दर्।
बहुत सुन्दर तो इस काम में भी हाथ आजमा रहे हैं
अरे आप तो बड़े अच्छे असिस्टेंट पेंटर लग रहे हैं ।
बहुत खूब माधव..अब ऐसी ही पेंटिंग कागज पर भी कर डालो. खूब मजा आयेगा.
अरे भाई, हमारे यहां भी रंग रोगन होना है। आ जाना।
अरे वाह पेंटर बाबू :)
क्या कहने डियर। बहुत खूब। ये तो अच्छा है अब तो घर सुंदर सुंदर हो जाएगा। फिर मस्ती से रहना। क्यों है ना। हां खेलते समय एलर्ट रहा करो ताकि कोई चीज गुम न हो। मेरी शुभकामनाएं व बधाई।
मनभावन होने के कारण
"सरस पायस" पर हुई "सरस चर्चा" में
इन्हें देख मन गाने लगता!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
हाहा क्या बात है छोटे पेंटर बाबु ;) मजा आ गया :)
painter ji ram ram...
free ho jao to chale aana sara ghar baki hai...abhi mera to..
कौशल्या आदि मां कैसे बनीं? दशरथ से? यज्ञ से? नहीं; दशरथ ने होता, अवयवु और युवध नामक तीन पुरोहितों से ''अपनी तीनों रानियों से सम्भोग करने की प्रार्थना की।'' पुरोहितों ने ''अपने अभिलषित समय तक उनके साथ यथेच्छ सम्भोग करके उन्हें राजा दशरथ को वापस कर दी।'' (पृ. 11) ऐसे वर्णन न तथ्यपूर्ण कहे जायेंगे, न अस्मितामूलक, बल्कि कुत्सापूर्ण कहे जाऐंगे। ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्था में दलितों के साथ स्त्रिायां भी उत्पीड़ित हुई हैं। कौशल्या आदि को उनका वृद्ध नपुंसक पति अगर पुरोहितों को समर्पित करता है और पुरोहित उन रानियों से यथेच्छ सम्भोग करते हैं तो इससे स्त्राी की परवशता ही साबित होती है। दलित स्त्राीवाद ने जिसे ढांचे का विकास किया है, वह पेरियार की इस दृष्टि से बहुत अलग है। पेरियार का नजरिया उनके उपशीर्षकों से भी समझ में आता है, ÷दशरथ का कमीनापन' (पृ. 33), ÷सीता की मूर्खता', (पृ. 35), ÷रावण की महानता' (पृ. 38), इत्यादि।
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