एक दिन छत पर पापा , विकी चाचा और कुछ और लोग क्रिकेट खेल रहे थे . मै भी पहुच गया , खेलने के लिए , व्यस्त खिलाड़ियों ने मुझ पर ध्यान नहीं दिया और मुझे किसी टीम में जगह नहीं मिली . मै बारहवे खिलाड़ी की तरह हो गया , पर मुझे ये कहाँ बर्दास्त था मै तेंदुलकर हूँ न की दिनेश कार्तिक . सो मैंने विद्रोह कर दिया और बीच पीच पे आकर धरना दे दिया . लोगो ने हटाने की कोशीश की पर मै नहीं हटा , खुटा गाड़ कर खडा हो गया पीच पर , जब जबरदस्ती की गई तो रोने लगा , और जबरदस्ती करने पर आवाज और तेज़ हो गई . मेरे असहयोग आन्दोलन का फल ये हुआ की मैच के बीच ब्याव्धान पड़ने के कारण खेल स्थगित करना पडा .
असहयोग आन्दोलन
आख़िरी रास्ता : मांगे मनवाने का
7 comments:
बहुत सही...हमको भी खिलाओ नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की निति भी ठीक ही है महाराज!! लगे रहो!!
mostly all of us did same when we were kid....reminded me old days when i was kid..good madhav..donot let them play if they are not giving u due respect in team:-)
madhaw g iagta ha gandhi giri abhi se pasand ha tabhi to abhi se jut gye ashyog andolan karmne me
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