खेलने का असली मजा समूह में ही है . बिल्कुल बेफिक्र , बिंदास अपनों के बीच में खेलना . चिल्ल्लाना , चीखना , मरना , बहती हवा सा , बिलकुल अल्हड . आरा में वर्षा दीदी , ऋतू दीदी , राघव भैयाँ और मुह्हल्ले के कुछ और हम उम्र के साथ खेलने में बहुत मजा आता था . . ओका बोका ,आइस - पाइस( चोरी -छुपना ) और बहुत से खेल जिनको ओलम्पिक में जगह मिलनी चाहिए , हम खेलते थे , हमारे खेल में कोई हारता नहीं था , न ही कोई प्रथम या द्वितीय आता , बल्कि हर कोई जीतता था . दिल्ली में मै ये सब बहुत मिस करता हूँ . यहाँ दिल्ली में व्यक्तिगत परिवार में ये कहाँ मुमकिन है !
Friday, March 26, 2010
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1 comments:
खूब खेले..शाबास!
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