Wednesday, March 31, 2010
बक्सर (जिन्हें मैंने खो दिया)
Monday, March 29, 2010
मेरा ननिहाल : बक्सर
बक्सर के बारे में सबसे बेहतरीन बात है की यह गंगा के किनारे बसा है . गंगा के किनारे बने मंदिर और घाट है . घाटों पर बैठकर गंगा के पावन दृश्य का अवलोकन करना कुछ बेहतरीन लम्हे होते है . मै भी पापा के साथ गंगा घाटों पर स्थित मंदिरों में गया और शीतल वायु का आनंद लिया . मैंने तो शीतल वायु का मजा भी लिया और घाटों की सीढीयों पर कदम ताल किया . गंगाजी का पानी बेहद साफ था हाँ थोड़ी बहुत गन्दगी भी थी जिसे खत्म करने की जरुरत है . पापा नदी में नहाना चाहते थे पर तौलिया नहीं होने के कारण नहा नहीं पाए .
गंगा के किनारे ही मेरे पूर्वजों ने एक महान संस्कृति को जन्म दिया है और जिया है जिसे पूरा संसार मानता है , इस नदी का ज़िंदा रहना पुरे भारतवर्ष के लिए ओक्सीजन है. मै इस देवी को बचाना चाहता हूँ ताकि मेरे जैसा कोई और माधव आये तो गंगा को ऐसे ही देखे जैसे की मै अभी देख रहा हूँ .
Friday, March 26, 2010
राघव भैया
खेल खेल में
Thursday, March 25, 2010
होली २०१०

पहली बार होली का मजा लिया . रंगों के साथ पहली बार साक्षात्कार हुआ , होली पर बड़े पापा , बड़ी मम्मी , ऋतू दीदी ओउर राघव भैया सभी घर पर आये थे . घर में खूब भीड़ भाड़ थी और शैतानियाँ करने के मौके भी खूब थे .पापा ने पिचकारी, रंग और टोपी खरीदी . वर्षा दीदी और ऋतू दीदी ने मुझे रंग लगाया . मम्मी को जब सभी रंग लगा रहे थे तो मै रोने लगा .
शाम को हमने नहा धोकर पाजामा कुर्ता पहना , पापा के साथ हमुमानजी के मंदिर में गया और पूजा की . वहां पंडितजी ने मुझे अबीर लगाया , घर आने पर सभी लोगो का पैर छुकर आशीर्वाद लिया और खूब खेला . फिर विकी चचा के साथ शर्मा नाना के घर गया , वहां मैंने पाजामे में ही सुसु कर दिया , परिणामस्वरूप , मेरा पाजामा खोलना पडा और मै नंगे ही घर आया , घर पर नंगा देखकर सभी हँसने लगे.
फिर दिन भर ही थकान जल्द ही नींद लाई और मम्मी के पास जाकर मै सो गया तो ये थी मेरी पहली एक्टिव होली
Tuesday, March 23, 2010
Monday, March 22, 2010
माधव इज बैक ( Madhav is Back)

२० मार्च २०१० को हम आरा से दिल्ली के लिए रवाना हुवे , दादादी , दादीजी , गुडिया बुआ , वर्षा दीदी सबके सब उदास थे और आखे नाम थी . मै भी उदास था सबसे बिछड़ने का गम जो था . रेलवे स्टेशन पर पहुचे तो श्रमजीवी एक्सप्रेस एक घंटे लेट थी , खैर ट्रेन आयी और भागमभाग के बीच हम ट्रेन पर सवार हुवे , पल भर में ही ट्रेन ने आरा शहर को छोड़ दिया . सुबह हुई तो ट्रेन दिल्ली के करीब गाजिआबाद में थी और फिर दिल्ली. दिल्ली में ठंडी हवाओं ने गर्म हवाओं का रूप धारण कर लिया था, टी वी में समाचार आ रहा था की इस साल भीषण गर्मी पड़ने के आसार है ! घर में बहुत गन्दगी बिखरी पडी थी , पापा ने कुछ भी सहेज कर नहीं रखा था , फ्रिज में फफुद लगी थी , रजाई , कम्बल , स्वेटर वैसे ही रखे हुवे थी , कुछ पौधे हरे थे और कुछ सुख चुके है . मेरे दोस्त नमन और तनु का कुछ पता नहीं , वे भी अपने नानी के घर गए हुवे है . इन तीन महीनों में पापा ने अपना ख्याल भी नहीं रखा , बहुत दुबले पतले से लग रहे है , मम्मी के ना रहने से उन्हें खाने -पीने की बहुत प्रॉब्लम हुई . हाँ पापा इस बीच मसूरी और धनौल्टी घुमने गए अकेले -अकेले .
अब अपने बारे में बताता हूँ , मै अब दो साल दो महीने का हो चुका हूँ , लंबाई बढ़ गयी है , बोलना सीख चुका हूँ , दिल्ली को दिलो बोलता हूँ . चप्पल से कुछ ख़ास प्यार पनपा है , बिना चप्पल के पैर जमीन पर नहीं रखता हूँ , दिन भर चप्पल -चप्पल बोलता रहता हूँ . पापा मुझे देखकर बहुत खुश होते है , गोद में उठाते है पर मै भाग जाता हूँ. पानी खूब पीता हूँ , टाफी ( Toffy) , कुरकुरे , बिस्कुट खाना बहुत अच्छा लगता है . मेरे खिलोनों का स्टोक भी बढ़ गया है , नए खिलौने ऐड हुवे है , एक बड़ा सा बैट भी मिला है . कपड़ो के मामले में तो ये मेरा स्वर्णकाल ही है , तीन महीनों में कम से कम तीस -चालीस नए कपडे खरीदे गए मेरे लिए . दो कुर्सियां खरीदी गयी . मकर संक्रांती , होली का जमकर लुत्फ़ लिया मैंने . राघव भइया से नयी दोस्ती भी हुई . मै कुछ बोल्ड हुआ और डरना कम हो गया है .
अगले कुछ दिन तक मै इन दो तीन महीनो की स्पेसल बातें आप तक पहुंचाउंगा.