Thursday, December 31, 2009

आरा : द सिटी ऑफ़ जोय

आरा आकर लगा जन्नत में आ गया हूँ . दिल्ली के दो रूम के कमरे के आगे आरा का घर कोठी से कम नहीं है . दो मंजिले का मकान , छत और आगे का बगान मेरे लिए भरपूर आजादी और पुरी निर्भीकता के साथ खेलने की आजादी .
एक दो दिन में ही मै पुरी तरह वहां के माहौल में ढल गया . शुरू में मेरा विशवास बर्षा दीदी ( मेरी बुआ की लडकी ) पर हुआ , उनसे सबसे पहले दोस्ती हुई . दादा दादी पर भरोशा आने में चार पांच दिन लग गए . दादाजी से तो मुझे शुरू में डर लगा था और उन्हें देखते ही मै भागकर किसी सुरक्षित जगह पर पहुच जाता था , दादाजी यह देखकर हँसतें थे . बाद में दादाजी और बाकी सभी से मेरी दोस्ती हो गयी. दिल्ली की तुलना में यहाँ सभी जल्दी सोते है पांच / छ बजे सुबह तक उठ जाते है , मै भी सुबह उठने लगा हूँ . उठते ही दादाजी के साथ दूध लाने जाता हूँ . फिर सभी छत पर धुप में बैठते है मै भी जाड़े की धुप में बैठता हूँ . ये चीजे दिल्ली में नसीब नहीं होती थी . यहाँ मुझे ज्यादा आजादी है , हर काम के लिए , खेलना, बाहर घूमना , शरारते करना . दादा दादी मेरी शरारतों को देखते है और मुझे रोकते नहीं है , शरारत करने की पुरी छुट देते है . दादीजी कहती है "करने दो शरारत ". आरा की लाइफ दिल्ली से हर मामले में बेहतर है , काम से काम मेरे लिए तो है ही . यहाँ मुझे बाहर घुमाने वाले कई लोग है.
आरा एक जिंदादिल शहर है और यहाँ के लोग भी ज़िंदा दिल है आगे मै अपने आरा प्रवास के बारे के बताउंगा

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आपको तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

tyto said...

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