Sunday, November 1, 2009

आवारापन

कल शनिवार को आवारागर्दी की. मेरा दोस्त नमन आया था मेरे साथ खेलने . वो अपने साथ अपनी दो पिचकारी ( होली की बची हुई ) लाया था , मुझे वो पिओच्कारियाँ बड़ी अच्छी लगी और पिचकारी के लिए में उससे लड़ने लगा , आखिर में एक पर मेरा कब्जा हो गया , हम दोनों बड़ी देर तक खेलते रहे . फिर कुछ उत्पात सुझा , और हम दोनों अपनी बिल्डिंग में ही एक अंकल के घर में चले गए , संजीव और सुमन अंकल एक साथ रहते है , वहां उन्होंने हमें छठ पूजा का प्रसाद दिया , "ठेकुआ ". हम दोनों ठुकुआ पाकर बहुत खुश हुए और खाते हुए खेलने लगे , उनके घर में पड़े सामान की जाच पड़ताल शुरू की , मैंने बैड्मिन्तन का रैकेट उठा लिया और बन गया प्रकाश पादुकोण . जब शैतानियाँ बढ़ गयी तो अंकल ने हमें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया.तब तक मै बिलकुल गंदा हो गया था , मुह , हाथ, पैर में धुल-मिट्टी लग गयी थी . घर आने पर मम्मी ने तुंरत अच्छी तरह से नहला-धुला कर हीरो बना दिया .








1 comments:

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर माधव भैय्या गजब किये हो यार......

 
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