Friday, October 30, 2009

किचेन में कोहराम


जब मम्मी किचेन में होती है पहुच जाता हूँ उनकी हेल्प करने , आलू निकाल कर देता हूँ , प्याज देता हूँ , मिक्स़र चलाने में मदद करता हूँ , पहले जब मिक्स़र चलता था और आवाज होती थी तो डर जाता था अब डर नहीं लगता है ,अब तो मिक्स़र का स्विच भी दबाता हूँ .फ्रीज खोलता हूँ , डस्टबीन का ढक्कन खोलता हूँ , मतलब की खूब परेशान करता हूँ और इससे काम में देर होती है . इस दौरान पापा या तो टी वी देख रहे होते है या कंप्यूटर पर होते है , मम्मी पापा से लड़ती है , कहती है "कभी तो बच्चे को संभाल लीजिए ". पापा कुछ नहीं बोलते बस मुस्करा देते है और मुझे अपने पास रख लेते है , थोड़ी देर मुझे प्यार करते है और खिलाते है और फिर टी वी / कंप्यूटर में लग जाते है और मै सरक कर किचेन में मम्मी के पास पहुच जाता हूँ . मम्मी फिर पापा पर शुरू हो जाती है वगैरह ..वगैरह ...............

Thursday, October 29, 2009

मेरा एस यु वी (SUV)

मेरा एस यु वी (SUV) है मेरे पापा . कभी कभी घोड़ा बनकर , मुझे अपनी पीठ पर बैठा कर चक्कर लगवाते है . मै उनकी पीठ पर बैठकर बहुत ही खुश होता हूँ, मेरी खुशी आप तस्वीरों में देख सकते है . वैसे उनकी पीठ काफी चौडी है इसलिए मेरे दोनों पैर नीचे नहीं आ पाते है सो गिरने का ख़तरा बना रहता है पर आज तक उन्होंने मुझे कभी गिरने नहीं दिया है . हाँ मेरी इस ट्रिप के बाद पापा के घुटने दर्द करते है पर मेरी खुशी के आगे ये दर्द मायने नहीं रखता !



Wednesday, October 28, 2009

भैंस चालीसा

मेरे एक चाचा ,बोले तो ताऊ, पुणे में रहते है नाम है राहुल , कंप्यूटर का कोर्स कर रहे है , डी वाई कॉलेज ऑफ़ इन्जीनीरिंग पुणे से . उन्होंने पापा के ओरकुट अकाउंट पर एक स्क्रैप भेजा है. स्क्रैप है भैंस चालीसा. ताऊ से मिलना हो तो यहाँ जाए . भैंस-वैस के बारे में मै तो कुछ नहीं जानता , वैसे उनका भैंस चालीसा ,बिना उनकी अनुमती के , मै आपके लिए पोस्ट कर रहा हूँ.

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
So now you can decide
अक्ल बङी या भैंस









ताऊ के साथ मेरी एक तस्वीर

ये प्यास है बड़ी

पानी मुझे पसंद है , पीने के लिए खेलने, लीपने के लिए . किसी को भी पानी पीते देखता हूँ , बस दौडा चला जाता हूँ पीने के लिए बोलता हूँ दे .. दे ...दे ... दे....दिया तो ठीक है नहीं तो रोना शुरू . खैर अक्सर पीने को मिल ही जाता है , लोग कहते है पिछले जन्म में मरुस्थल का निवासी था जो पानी के लिए मारा मारा फिरता था. शुरू में दूध की बोतल से पानी पीता था , बाद में मम्मी ने मेरे लिए एक ग्लास खरीदा , बिलकुल मेरे लिए ही बना , रंगीन स्टील का म्यूजिकल ग्लास जो आवाज करता है . पापा को कभी बोतल से पानी पीते हुए देखा , मन में आया क्यों ना मै भी बोतल से ही पियू. बस क्या था जब भी पानी की भरी हुई कोई बोतल दिखती है , बस उठा कर पीने की कोशीश करता हूँ , प्रयास सफल होता है , थोडा पानी मुह में जाता है , थोडा नाक में और बाकी कपडे पर गिरता है .पर कोई बात नहीं ,ये करके खुशी होती है. अब तो ढक्कन खोलना भी सीख गया हूँ , अब जहां भी पानी की बोतल दिखती है, ढक्कन खोलता हूँ , पीता हूँ और फिर नीचे पानी गिराकर लीपना शुरू कर देता हूँ , घर के लोग परेशान होते है पर मुझे इस बात की फ़िक्र कहाँ है ?





ढक्कन खोलना सीख गया हूँ

ये प्यास है बड़ी !

ये प्यास है बड़ी

हर हाल में पीना है

हर हाल में पीना है

size does not matter

Tuesday, October 27, 2009

सबको "मम्मी"

आज कल एक नया शब्द बोलना सिखा हूँ , शब्द है "मम्मी ". सभी

को मम्मी के नाम से ही बुलाता हूँ . पापा को भी मम्मी , मामा को

मम्मी , तनु नमन ( मेरे दोस्त ) को भी मम्मी , और मम्मी तो मम्मी

है ही .

Monday, October 26, 2009

छठ पूजा


छठ पूजा के दिन शाम को मम्मी पापा को छठ पूजा घाट पर ले जाने का जिद करने लगी , पापा तुंरत राजी हो गए , मेरी तो मौज हो गयी , सुबह में भी पापा और मामा के साथ सीता राम दीवान चन्द , छोले भठूरे की दूकान पहाड़गंज, का भ्रमण किया था और अभी शाम में भी घुमने का सुनहरा मौका मिल रहा था. तुंरत पापा मम्मी के साथ वजीराबाद के यमुना घाट पर पहुच गया . घाट पर छठ व्रतियों की काफी भीड़ थी . कुछ व्रती लेटकर घाट पर जा रहे थे , अजीब श्रद्धा थी लोगों में . मै काफी खुश था वहा जाकर , तभी कुछ बच्चों ने पटाखे फोड़ने शुरू किये और मेरी हालत खराब हो गई . आपको तो पता ही होगा मै पटाखों से कितना डरता हूँ . खैर उसके बाद छठ पूजा घाट पर मेरा वक्त डरा सहमा हुआ ही बीता , रह रह कर पटाखे फुट रहे थे . पापा बता रहे थे की आज से दस साल पहले छठ पूजा घाट पर पटाखों का बिलकुल रिवाज नहीं था , वो तो इन दिनों बच्चों ने शुरू किया है . मेरा मानना है की छठ पूजा बहुत ही त्याग और श्रद्धा का पर्व है और इसमें पटाखों का क्या काम ? पर मेरी कौन सुनने वाला है. छठ पूजा घाट के बाद हम कमला नगर मार्केट पहुचे , कोल्हापुर रोड से मम्मी ने मुझे दो टी शर्ट खरीदी . उसके बाद पापा हमें उडुपी रेस्टोरेंट में ले गए . वहां पहुचते ही मुझे नीद आ गयी और मै पापा की गोंद में ही सो गया . जब घर आया तो मेरी नींद खुली , पता चला की मम्मी पापा ने ढोसा और चोवमीन खाया था .तो इस तरह आज की सुबह और शाम दोनों अच्छी रही .







लेटकर छठ पूजा घाट जाता एक व्रती





वजीराबाद पुल , दिल्ली

सीता राम दीवान चन्द ( पहाड़गंज )के छोले भठूरे

शनिवार को पापा और मामा ने छोले भठूरे खाने का प्लान बनाया और सुबह ही घर से निकलने लगे, उनको कपडे पहनता देख मेरे भी कान खड़े हो गए और , मैंने भी उनके पीछे जाने की जिद पकड़ ली. पापा ने ले जाने से साफ़ मना कर दिया . उनके नकारात्मक रुख को देखकर मैंने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया और खूब तेज तेज रोना शुरू किया , मेरे आसुओं ने आखिर में रंग लाया और पापा मुझे ले जाने के लिए राजी हो गए , पर मै तब तक रोता रहा जब तक तैयार होकर नीचे सड़क तक नहीं आ गया . मामा ने कहा ," करो या मरो " के नारे पर आ गया है .
बहरहाल रोने का फायदा हुआ और मुझे घुमने का मौका मिला .सीता राम दीवान चन्द , की छोले भठूरे की दूकान पहाड़गंज के चुना मंडी में है , और पापा की मनपसंद दूकान है . पापा अक्सर घर में उस दूकान की बात करते है , पनीर वाले भठूरे और छोले . दूकान पर पहुचने पर देखा बहुत भीड़ थी. पापा और मामा तो भटूरों का आनन्द लेने लगे और मै इधर उधर घुमने लगा , पास आने पर पापा एक चना मेरे मुह में डाल देते .दोनों भटूरों में इतना खो गए की मेरा ध्यान ही नहीं रहा , खैर मैंने भी खाते समय दोनों को परेशान नहीं किया . खाते खाते पापा और मामा मिलकर तीन प्लेट भठूरे खा गए और एक प्लेट घर ( मम्मी ) के लिए पैक करा लिया . वहां से हम बिरला मंदिर गए . वहा से मंदिर मार्ग पर एक किओस्क में मामा और पापा ने चाय पी , वही पर मैंने सु सु किया .आखिर में यात्रा पुरी हुई .
सीता राम दीवान चन्द , छोले भठूरे की दूकान पहाड़गंज, चुना मंडी
पनीर वाले भठूरे और छोले

केवल फोटो में ही खिलाया था इसके बाद अपना पेट ही भरते रहे दोनों

ये दुकान के बगल खाने का जगह है


यहाँ मंदिर मार्ग पर दोनों ने चाय पी और मुझे कुछ भी नहीं दिया

गुस्से में मैंने सु सु कर दिया , नीचे गीला दिख रहा है ना !

Friday, October 23, 2009

तिजोरी पर हाथ साफ़

घर की अलमारी मेरे लिए हमेशा कौतुहल का विषय रही है , अक्सर मम्मी या पापा अलमारी खोलते है और कुछ काम करके बंद कर देते है मुझे बस उस थोड़े वक्त में ही उसके अन्दर झाकने का समय मिलता था , मुझे लगता था की उसके अन्दर बहुत सी चीजे है मेरे काम की , पर अलमारी मेरे लिए सपने जैसा था , क्योकी कभी मौका ही नहीं मिलता था की उसके अन्दर की चीजों पर हाथ साफ़ कर सकू . कल यु ही मैंने अपने दोनों पैर को अंगूठे पर उचकते हुए अलमारी को खोलने की कोशिस की और सफलता मिल गयी . हमेशा उसे खोलते हुए मम्मी पापा को देखता हूँ पर कभी मुझे मौका नहीं मिला था . स्वतंतत्रता के साथ अलमारी खोलने पर बहुत अच्छा लगा. ये क्रिया कई बार दुहराई ,और अलमारी खोलना और बंद करना सीख गया. अब अलमारी के अन्दर की चीजों पर ध्यान गया . खेलने /फेकनें लायक बहुत सी चीजे थी समझ नहीं आ रहा था कहाँ से शुरू करू , तभी मेरी नजर अलमारी के अन्दर और एक अलमारी(लॉकर ) पर गयी , लगा इसे भी खोलना चाहिए , बिना किसी ख़ास मेहनत के वो भी खुल गयी , अन्दर कुछ कागजात , फ़ाइले और डब्बे रखे हुए थे , मैंने उन सभी चीजो का परीक्षण करना शुरू ही किया था की पापा टपक गए, दरअसल पापा मझे काफी देर से देख रहे थे और मेरे खतरनाक कदम का इंतजार कर रहे थे , दरअसल अभी तक मैंने कुछ नुक्सान नहीं किया था इसलिए वो पीछे से ही देख रहे थे थे . बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी , अब हर वक्त मेरा टारगेट अलमारी खोलना ही है ,और पहुच जाता हूँ अलमारी खोलने , थक हार कर अब महाशय को लाक रखा जा रहा है , मुझसे बचाने के लिए .

Wednesday, October 21, 2009

दोस्त ने तोड़ा खिलौना

नमन और तनु मेरी जिन्दगी के पहले मित्र है , मेरे साथ खेलने के लिए रोज आते है , नमन , टॉमी (कुत्ता) बनता है और हमें काटने को दौडाता है , मै और तनु भाग कर छिपते है , वैसी मुझे तो कुछ ख़ास समझ नहीं आता है , पर मै दोनों के साथ खुश रहता हूँ. पर इनके साथ की मुझे कुछ कीमत भी चुकानी पड़ती है , वे दोनों मुझसे बड़े है , उम्र और ताकत दोनों में , और अक्सर मुझे मारते रहते है , नमन तो अक्सर मेरे गाल को नोचता , खीचता रहता है , तनु भी मुझे अक्सर धक्का दे देती है . बात यहाँ भी खत्म नहीं होती, दोनों की पैनी नजर मेरे खिलौनें पे होती है , नजर चुकी नहीं की खिलौनें गायब . बाद में वो खिलौनें उनके घर से बरामद होते है, मेरे सारे खिलौने इन्ही दोनों ने तोडे है .



नमन और तनु के साथ

अभी कल मेरा सबसे प्यारा खिलोना जो मेरी नानी ने मुझे दिया था ( बक्सर के विशाल मेगा मार्ट से खरीदा हुआ ) नमन ने सबकी नजरों के सामने से उड़ा दिया और अपने घर ले जाकर उसके टुकड़े - टुकड़े कर डाले , उसकी (खिलोने) मौत की खबर उसकी मम्मी ने हमें दी . ये खबर सुनकर हमें बड़ा दुःख हुआ , मेरी नानी का दी हुई वो चीज मै पूरी उम्र अपने साथ रखना चाहता था , मगर ये हो ना सका . अब तो बस उसकी याद है जो मेरे दिल में बसी होगी जिसे कोई तोड़ नहीं सकता .



नानी का दिया हुआ मेरा सबसे प्यारा खिलौना जो अब नहीं है

याद आयेंगे बीते पल (खिलौने के साथ )


Monday, October 19, 2009

हैपी दीवाली बनी अनहैपी !


दीवाली शाम तक तो बहुत ही हैपी रही. सुबह से ही मौज मस्ती हो रही थी , हाथी की देखा, उसकी सवारी भी की , दोस्तों ( तनु और नमन) के साथ खूब खेला . उसके बाद पापा मम्मी के साथ घुमु घुमु करने बाजार गया . शाम को मम्मी ने मुझे सिल्क का कुर्ता और धोती पहनाई और कुल मिला जुलाकर बहुत ही अच्छा दिन रहा . पर जब रात हुई और कानफाडू पटाखे बजने शुरू हुए , मुझे बहुत डर लगाने लगा, तेज पटाखों की आवाज से मै खूब तेज रोने लगा और मम्मी और पापा के गोंड में समा गया. जब शाम को मम्मी ने पूजा शुरू की , तब और पटाखे बजने लगे , और मेरा बुरा हाल हो गया . मै पटाखों से बहुत डरता हूँ और मेरी सलाह है की औरो को भी पटाखों से दूर रहना चाहिए. तो आख़िरी में दिन भर की सुखद यादों के साथ शाम/ रात अनहैपी हो गयी , खैर आपको
हैपी दीवाली












दीवाली पर सफाई

हाथी देखने के बाद नमन और तनु के साथ खेलने छत पर गया , वहां काफी गन्दगी देखी , तुंरत झाडू लेकर सफाई पर लग गया आखिर में दीवाली साफ़ सफाई का ही तो त्यौहार है.



दीवाली शौपिंग

हाथी सवारी के बाद निकल पड़ा दीवाली शौपिंग के लिए. मम्मी पापा के साथ बाजार गया . बाजार में बहुत भीड़ थी , मिठाई , सजावट के सामान , पटाखे, गिफ्ट पैक , दियें , खिलौने आदि से बाजार पटा पड़ा था . हरेक आदमी खरीदारी में जुटा था . मम्मी पापा ने भी बहुत सारी खरीदारी की . पापा ने मेरे लिए खिलौनें खरीदें .




बहुत भीड़ है !




थक गया हूँ थोडा आराम कर लू



दिए खरीदने है भई



सोचता हूँ क्या लु ! क्या ना लु !

पापा के साथ

 
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