Thursday, May 31, 2012

इट हैपेन्स वनली इन बचपन (It Happens only in BACHPAN)


पिछले रविवार को हम दिल्ली विश्वविदयालय ,कुलपति कार्यालय ,नोर्थ कैम्पस के पार्क  में गए थे . गर्मी के मौसम में भी वहा की हरियाली   देखकर दिल खुश हो जाता है . वैसे तो दिल्ली में हजारों  छोटे बड़े पार्क है पर ये पार्क मुझे सबसे सुंदर और शांत लगता है . पार्क की सुंदर देखभाल के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन की जीतनी तारीफ़ की जाय कम  है .


अब बात करे माधव की . पार्क की हरियाली देखकर माधव बहुत  खुश हुए . पहले तो जी भर कर दौड़े , खेले कूदे . थकने के बाद हरी  घास पर बैठे तो लेट गए फिर लोटते लोटते  ही पार्क का एक चक्कर लगा लिया .
माधव को घास पर लोटता देख मैंने मन ही मन कहा -इट हैपेन्स वनली इन बचपन (It Happens only in BACHPAN) 






















                                                 कुलपति का कार्यालय 















Monday, May 28, 2012

समर वर्क @ रात बारह बजे

माधव की  Summer vacations चल रही है . इन दिनों दिल्ली में दिन में सूरज आग बरसा रहा है सो दिन में कही जाने का सवाल ही नहीं है . इसलिए जनाब दिन में अच्छी नींद लेते है . अब दिन में नींद लेने के बाद , रात में जल्दी नींद कहा आती है , फिर क्या ,रात बारह बजे समर  होम वर्क करने लगे . होम वर्क में मन ऐसा रमा कि उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे , फिर जबरदस्ती लाईट आफ की गयी तब जाकर जनाब सोये .






















Thursday, May 24, 2012

स्टीकर वाला नूडल्स

माधव जी अब काफी खोजी (Explorer) हो गए है . किसी दिन टीवी पर Knorr Soupy Noodles का विज्ञापन देखा जिसमे नूडल्स के पैकेट में छोटा भीम का स्टीकर मिलता है . अब बस उसी दिन से उसके दीवाने हो गए है , रोज वही नूडल्स चाहिए . नूडल्स का पैकेट खुलता है और स्टीकर पाने के लिए माधव की बेचैनी देखते बनती है. स्टीकर में कभी "राजू" मिलता है , कभी "कालिया" , कभी "छुटकी" . आज के पैकेट में "ढोलू -भोलू" निकले है . अभी तक "भीम" नहीं निकले है , खैर इन्तेजार जारी है ......






 स्टीकर देकर प्रोडक्ट बेचने का ये खेल कंपनियाँ कई सालो से कर रही है . मुझे मेरे बचपन की कई बाते याद है जिसमे किसी प्रोडक्ट में कुछ स्टीकर या कोई कार्ड मिलता था . मुझे याद है 1990 के आस पास कोई बबलगम के पैकेट के अंदर एक पर्ची निकलती थी जिसमे क्रिकेट के किसी प्लेयर की तस्वीर होती थी और एक से लेकर छ के बीच की कोई रन संख्या होती थी . १०० रन इकट्ठा हो जाने पर एक डायरी मिलती थी और पाच सौ इकट्ठा करने पर एक छोटा क्रिकेट बैट मिलता था. स्टीकर के लालच में और अधिक से अधिक रन जमा करने के लिए हम , बिना मन के भी वो बबलगम खरीदते थे . बबलगम का स्वाद तो होता नहीं था सो  बबलगम खाकर  मुह से फुलाते थे .  रन जुटाने के लिए हमारी , समकालीन साथियो से प्रतियोगिता भी चलती थी . किसी भी हाल में हमारे पास मेरे साथी से अधिक रन होने चाहिए .मुझे याद है मैंने १०० रन तो बहुत जल्द जुटा लिए और नजदीक के दुकानदार से डायरी भी ले ली थी . डायरी के बाद मेरा लक्ष्य ५०० रन जुटाकर बैट लेने की थी पर शायद मैं बैट नहीं ले पाया था .  वो भी क्या दिन थे..    लगता है अब वो बबलगम मार्केट में नहीं मिलता .

Monday, May 21, 2012

गर्मी की छुट्टियों में मौजा ही मौजा

माधव के स्कुल की गर्मी की छुट्टियाँ चल रही है . सेट रूटीन छूट गया है . अब तो जनाब सुबह में आराम से सात -आठ बजे तक  जागते है. जागते ही साइकिल उठा कर निकल लेते है . उसके बाद दिन चर्या की शुरुआत होती है . पोटी - ब्रश और स्नान.फिर छोटा भीम , उसके बाद कंप्यूटर ....


दोपहर में मम्मी कुछ समर होम वर्क कराती है फिर सो जाते है . शाम को नींद खुलते ही सायकिल लेकर निकल लेते है . रात को सोने तक कुछ ना कुछ चलता रहता है .


इसी दौरान मुझसे रोज फरमाइस भी करते है . कभी पार्क चलने की , कभी लेक चलने की , कभी इंडिया गेट तो कभी रेल  म्यूजियम................... 


गर्मी की छुट्टियों की कुछ तस्वीरे 


























मौज -मस्ती जारी है ................







Friday, May 11, 2012

गायत्री मंत्र

आज माधव के स्कुल में गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई . नए सत्र के लिए स्कुल अब दो जुलाई को खुलेगा . इस महीने माधव  ने गायत्री मंत्र याद कर लिया है . अब रोज रात  सोने से पहले पांच बार गायत्री मंत्र सुनाते है 





 
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