Sunday, November 1, 2009

जाने भी दो यारो

शुक्रवार को रात में एक शादी की पार्टी में गया था . पार्टी पंजाबी बाग में थी. शादी की जगह बहुत सुन्दर थी , मुझे अच्छा लगने लगा ,तभी मेरा सबसे बड़ा दुश्मन मेरा पीछा करते करते वहां भी पहुच गया , आप समझ गए ना , हाँ बिलकुल सही सोचा , "पटाखे ". यहाँ भी शुरू हो गए , क्या करू पीछा ही नहीं छोड़ते , दीवाली बीते कई दिन हो गए पर पटाखे है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहे है, पर यहाँ तो शादी के पटाखे छुट रहे थे . रही सही कसर बैंड बाजों वालों ने पुरी कर दी. हँसी-खुशी के माहौल में मेरी जान निकली जा रही थी. खाने पीने के रंग -बिरंगे स्टाल लगे हुए थे, पाँव भाजी , गोलगप्पे, आलू टिक्की, चोव्मीन ,बेसन का चीला ,कुल्फी ,राबड़ी, गुलाब जामुन , आइस क्रीम , कई प्रकार के पेय पदार्थ वगैरह वगैरह , मौजूद थे वहां , पर मेरे लिए इन चीजो का कोई मोल नहीं , मै तो बस अपने पापा-मम्मी के गोद में चिपका हुआ था डर के मारे. लगभग दो घंटो के बाद पटाखों और बैंड बाजों का शोर कम हुआ तो मै कुछ नोर्मल हुआ , मेरी नजर एक आंटी पर गयी , उनके हाथ में एक बड़ा सा गुब्बारा था , मै तुंरत मम्मी की गोद से उतरा और आंटी की तरफ लपक कर उनके हाथ से गुब्बारे को पकड़ लिया , आंटी बड़ी अच्छी थी उन्होंने तुंरत अपना गुब्ब्रारा मुझे दे दिया , मै उसे उडाता रहा. थोड़ी देर में वो गुब्बारा फुट गया.तब तक रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे , और हम घर को निकल पड़े .








1 comments:

संगीता पुरी said...

पंजाबी बाग की शादी की पार्टी .. वहां तो जरूर मस्‍ती की होगी तूने .. धीरे धीरे पटाखों से दोस्‍ती हो ही जाएगी तुमहारी भी !!

 
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