Friday, June 22, 2012

यादों का कारवाँ

परसों माधव की बुआ(मेरी बहन ), वर्षा  और बुचिया वापस आरा लौट गयी . माधव के साथ साथ हम सभी उदास है . पिछले पन्द्रह दिन माधव के साथ साथ हमारे लिए भी बहुत अच्छा था . मैंने अपनी बहन के साथ कुछ वक्त साथ रहा .

नौकरी लगने के बाद पहली बार मैं अपनी बहन के साथ इतने दिन रहा .यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहा . मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियाँ परत-दर-परत रखी होती है। बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है। 


बहनें हमेशा भाई के प्रति स्नेह का वही भाव रखती हैं जो बचपन में उनमें रहता है। बहनें तो भाइयों की सलामती की, तरक्की की दुआ करती रहती है पर कई भाई ही अपना वचन भुला देते हैं। आज के भौतिकतावादी युग में जब सारे रिश्ते बेमानी हो रहे हैं, भाई-बहन का रिश्ता दोनों के लिए एक संबल बन सकता है।



































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