माधव जी अब काफी खोजी (Explorer) हो गए है . किसी दिन टीवी पर Knorr Soupy Noodles का विज्ञापन देखा जिसमे नूडल्स के पैकेट में छोटा भीम का स्टीकर मिलता है . अब बस उसी दिन से उसके दीवाने हो गए है , रोज वही नूडल्स चाहिए . नूडल्स का पैकेट खुलता है और स्टीकर पाने के लिए माधव की बेचैनी देखते बनती है. स्टीकर में कभी "राजू" मिलता है , कभी "कालिया" , कभी "छुटकी" . आज के पैकेट में "ढोलू -भोलू" निकले है . अभी तक "भीम" नहीं निकले है , खैर इन्तेजार जारी है ......
स्टीकर देकर प्रोडक्ट बेचने का ये खेल कंपनियाँ कई सालो से कर रही है . मुझे मेरे बचपन की कई बाते याद है जिसमे किसी प्रोडक्ट में कुछ स्टीकर या कोई कार्ड मिलता था . मुझे याद है 1990 के आस पास कोई बबलगम के पैकेट के अंदर एक पर्ची निकलती थी जिसमे क्रिकेट के किसी प्लेयर की तस्वीर होती थी और एक से लेकर छ के बीच की कोई रन संख्या होती थी . १०० रन इकट्ठा हो जाने पर एक डायरी मिलती थी और पाच सौ इकट्ठा करने पर एक छोटा क्रिकेट बैट मिलता था. स्टीकर के लालच में और अधिक से अधिक रन जमा करने के लिए हम , बिना मन के भी वो बबलगम खरीदते थे . बबलगम का स्वाद तो होता नहीं था सो बबलगम खाकर मुह से फुलाते थे . रन जुटाने के लिए हमारी , समकालीन साथियो से प्रतियोगिता भी चलती थी . किसी भी हाल में हमारे पास मेरे साथी से अधिक रन होने चाहिए .मुझे याद है मैंने १०० रन तो बहुत जल्द जुटा लिए और नजदीक के दुकानदार से डायरी भी ले ली थी . डायरी के बाद मेरा लक्ष्य ५०० रन जुटाकर बैट लेने की थी पर शायद मैं बैट नहीं ले पाया था . वो भी क्या दिन थे.. लगता है अब वो बबलगम मार्केट में नहीं मिलता .
स्टीकर देकर प्रोडक्ट बेचने का ये खेल कंपनियाँ कई सालो से कर रही है . मुझे मेरे बचपन की कई बाते याद है जिसमे किसी प्रोडक्ट में कुछ स्टीकर या कोई कार्ड मिलता था . मुझे याद है 1990 के आस पास कोई बबलगम के पैकेट के अंदर एक पर्ची निकलती थी जिसमे क्रिकेट के किसी प्लेयर की तस्वीर होती थी और एक से लेकर छ के बीच की कोई रन संख्या होती थी . १०० रन इकट्ठा हो जाने पर एक डायरी मिलती थी और पाच सौ इकट्ठा करने पर एक छोटा क्रिकेट बैट मिलता था. स्टीकर के लालच में और अधिक से अधिक रन जमा करने के लिए हम , बिना मन के भी वो बबलगम खरीदते थे . बबलगम का स्वाद तो होता नहीं था सो बबलगम खाकर मुह से फुलाते थे . रन जुटाने के लिए हमारी , समकालीन साथियो से प्रतियोगिता भी चलती थी . किसी भी हाल में हमारे पास मेरे साथी से अधिक रन होने चाहिए .मुझे याद है मैंने १०० रन तो बहुत जल्द जुटा लिए और नजदीक के दुकानदार से डायरी भी ले ली थी . डायरी के बाद मेरा लक्ष्य ५०० रन जुटाकर बैट लेने की थी पर शायद मैं बैट नहीं ले पाया था . वो भी क्या दिन थे.. लगता है अब वो बबलगम मार्केट में नहीं मिलता .
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