Monday, October 12, 2009

मेरे आतंक के शिकार

मै आतंकवादी नहीं हु पर मम्मी पापा मुझे आतंकवादी कहते है ( प्यार से ). मै तो बस अपना काम करता हूँ , जो मन में आता है करता हूँ . हरेक वस्तु मेरे लिए नयी है और मै उस पर प्रयोग करता हूँ , चाहे वो मोबाइल फोन हो , कैलकुलेटर हो , टी वी का रिमोट हो या कुछ भी . मै सभी वस्तुओ को एक सामान द्रिष्टी से देखता हूँ और प्रयोग करता है , और प्रयोगों के दौरान ही कुछ वस्तुएं खराब या टूट जाती है और मुझे आतंकी ठहरा दियां जाता है . मुझ से घर के लोग खौफ्फ़ खाते है और कुछ वस्तुए मेरी पहुच से दूर रखी जाती है पर हरेक वक्त अलर्ट रहना घर के लोगों के लिए भी संभव नहीं है और "सावधानी हटी दुर्घटना घटी ". अभी हाल ही मेरे आतंक का शिकार बना एक मासूम "कैलकुलेटर ". यु ही टहलते हुए जनाब मुझे टेबल पर दिखे और मैंने इनको पटक पटक कर यमलोक पहुचा दिया , रेस्क्यू टीम के रूप में मम्मी और पापा आए पर तब तक देर हो चुकी थी , जनाब को हॉस्पिटल ले जाने लायक भी नहीं छोडा था मैंने . तस्वीर में जनाब का मृत शरीर पडा हुआ है अब ये मेरे खिलौने के रूप में स्तेमाल होते है ., आगे की पोस्ट में अपने कुछ और शिकारों के बारे में बताउंगा, अभी- अभी मुझे एक और शिकार दिखा है, जा रहा हूँ उसकी खबर लेने ...............


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